Mar 17, 2012

खेल से बड़ा खिलाड़ी


सचिन तेंदुलकर के जरिये दुनिया ने यह देखा कि किस तरह खेल से बड़ा खिलाड़ी होता है।अब तक दुनिया यही जानती थी कि खेल के जरिये खिलाड़ी की पहचान बनती है।और हम दुनिया से अलग तो नहीं है ।बात चाहे सुनील मनोहर गवास्कर की हो या फिर कपिल देव की। ध्यानचंद की हो या फिर डियागो मारेडोना की।इनकी लोकप्रियता का गा्रफ हाकी और फुटबाॅल के जरिये आगे बढ़ा और बढ़ता ही गया।लेकिन जब हम बात सचिन रमेश तंेुदलकर की करते है तो यही पर आकर यह पुरी बात बेमानी हेा जाती है।मौजूदा दौर में क्रिकेट के जरिये सचिन की पहचान नहीं है बल्कि सचिन के जरिये आज क्रिकेट पुरी दुनिया में अपनी डंका पीट रहा है।सचिन की सौेवे शतक का जुनून इस देश में इस कदर रहा कि हम बंग्लादेश से हार को तो बिना झिझक पचा लिए। वेा इसलिए कि इस मैच में मास्टर ने शतक जो लगाया।जिस मुल्क को दुनिया के नक्शे पर भारत ने लाया वही मुल्क से मात खाकर भी इस गम को सीने में छुपा लिए कि चलो सचिन ने इसमें शतक तेा लगाया।आज भारतीयों के लिए जीत और हार से बड़ा सचिन बन गए है।

लेकिन सचिन बनना और सचिन बनकर जीना कितना मुश्किल भरा डगर है इसका एहसास सचिन के ही उस बयान से लगाया जा सकता है। जिसमें सचिन ने बांग्लादेश के मीरपुर में सौवा शतक जड़ने के बाद कहा कि ‘‘मेरा वजन 50 किलो हल्का हो गया है।’’तो क्या अब सचिन का स्वाभाविक वजन महज 18 किलो बचा हेै। ऐसा बिल्कुल नहीं है।यह वो वजन था जो सचिन पिछले 22 साल से दुनिया के जिस मैदान में जाते थे, वो लेकर जाते थे।यह वजन था 100 करोड़ से ज्यादा लोगों की भावनाओं और उम्मीद का। जिसे सचिन ने बंग्लादेश की घरती पर जाकर उतारा।यह किसी बड़े खिलाड़ी का आखिरी मंजिल हो सकता है। लेकिन तेेंदुलकर के लिए यह महज एक पराव है।यानी अभी चलते ही रहना है।भारतीयो कीे उम्मीद और भावनाओ के बोझ को महज 24 घंटे के लिए विश्राम दिया है।इसे अंजाम तक पहुंचाना तो अभी बाकी है।

एक दौर था जब सुनील मनोहर गवास्कर क्रिकेट से 1988 में रियाटर हो चुके थे और भारत बड़ी बेसब्री से गवास्कर की परछाई को तलाश रहा था।जब भी कोई नया क्रिकेटर मैदान में उतरता तो उसमें गवास्कर के अक्स को देखने के लिए भारतीयों की नजरे उसपर टिक जाती ।लेकिन कामयाबी नहीं मिली।देश गवास्कर के विकल्प की तलाश में था लेकिन भारतीयों को क्या मालूम था कि इस कमी को पुरा करने के लिए खुद भगवान मैदान में उतरने का फैसला कर चुके है। ज्यादा वक्त नहीं बिता 15 नवम्बर 1989 को सचिन के रूप में 16 साल का लड़का कराची के मैदान में अवतरित हुआ।पहले और दूसरे मैच में नाकामी के बाद दुनिया के सामने 16 साल के इसी लड़के में क्रिकेट के प्रशंसको को कुछ उम्मीद दिखी।जिसके जरिये भारत में क्रिकेट की परम्परा आगे बढ़ सकती है।लेकिन बितते वक्क के साथ दुनिया 22 गज के धेरे में एक के बाद एक चमत्कार का गवाह बनता चला गया।जिस मुल्क में क्रिकेंट को जानने और समझने वाले लोगो की तादाद सैकड़ो में नहीं थी वहंा क्रिकेट नये सिरे से परवान चढ़ने लगा।आज भी कई ऐसे देश है जहां क्रिकेट से लोगों का सरोकार नहीं है वहां भी सचिन से लोगों का सरोकार है।यानी सचिन का मतलब इस दौर में क्रिकेट हो गया है। सचिन के जरिये दुनिया क्रिकेट को देखने व समझने के लिए पावरे पलक बिछा रही है।

ऐसे में हम हार पर कब तक आंसू बहाए, जीत पर कब तक जश्न मनाये ।इसलिए दुनिया की एक चैथाई आवादी ने यह फैसला किया कि सचिन के बल्ले की थाप पर जश्न मनाइगें और सचिन की हार को अपनी किस्मत समझ कर गले लगाइगें।यह सिलसिला जारी है... तब तक, जब तक सचिन मैदान पर है।